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मैं कुछ और ह
मैं कुछ और हू
ये तो नहीं
मुझमे हैं
उजाला भी
अँधेरा भी
मैं हु
गलत भी
सही भी
तुम सोचोगे
में भी तुम्हारी तरह
इंसान हू
पर..में कुछ और हू
ये तो नहीं
उस उजाले के
साए में
जो अँधेरा पनपे
उस सही में
तुझको जो गलत
दिखाई दे
उस हर एक गलत्
के साथ हर रोज
वो मैं हू
मैं कुछ और हू
ये तो नहीं.....
3 comments:
This one too is lovely..... so little words, yet a world in them :)
Awesome.
Keep posting, the last you posted was on March 9, today is March 19...... 10 din ho gaye yar !!
:)
ENJOY !
badhia sir ji
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