Saturday, February 21, 2009

मैं कुछ और हू

ये तो नहीं

मुझमे हैं

उजाला भी

अँधेरा भी

मैं हु

गलत भी

सही भी

तुम सोचोगे

में भी तुम्हारी तरह

इंसान हू

पर..में कुछ और हू

ये तो नहीं

उस उजाले के

साए में

जो अँधेरा पनपे

उस सही में

तुझको जो गलत

दिखाई दे

उस हर एक गलत्

के साथ हर रोज

वो मैं हू

मैं कुछ और हू

ये तो नहीं.....

1 comment:

Anonymous said...
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