Saturday, November 8, 2008

आखरी कलाम


मेरी ज़िन्दगी वो किताब बन गयी हे
जिसके हर एक पन्ने में तेरा नाम लिखा हे
तुझे भूलने क लिए किस किसको फाडू
न जाने कही ये ज़िन्दगी ही ख़म न हो जाये

दो चार शब्दों में नहीं लिख सकता में अपने एहसास
जब भी लिखे है एक गजल बन गयी हे

काफी पन्ने खाली छोड़ने क बाद
आज फिर एक गजल बन पड़ी है
चाहे तो इसे मेरा हाल-ऐ-दिल समझ लेना
या किसी पागल शायर का आखरी कलाम समझ भूल जाना