Saturday, November 8, 2008
आखरी कलाम
मेरी ज़िन्दगी वो किताब बन गयी हे
जिसके हर एक पन्ने में तेरा नाम लिखा हे
तुझे भूलने क लिए किस किसको फाडू
न जाने कही ये ज़िन्दगी ही ख़म न हो जाये
दो चार शब्दों में नहीं लिख सकता में अपने एहसास
जब भी लिखे है एक गजल बन गयी हे
काफी पन्ने खाली छोड़ने क बाद
आज फिर एक गजल बन पड़ी है
चाहे तो इसे मेरा हाल-ऐ-दिल समझ लेना
या किसी पागल शायर का आखरी कलाम समझ भूल जाना
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5 comments:
badhia sir kya likha
very romantic
sir see my new blog
http://seemywords-chirag.blogspot.com/
and also the old one
http://iamhereonlyforu.blogspot.com/
फिर कोई अपनी सी आवाज़ से बुलाये मुझे
तो शायद भूल जाऊ तुम्हें..
बिना कुछ कहे बिना नज़र उठाये कोई सताए मुझे
तो शायद भूल जाऊ तुम्हें..
नादानियाँ छोड़ सयाने हो जाओ कोई बताये मुझे
तो शायद भूल जाऊ तुम्हें..
तुम्हारी यादों से बेबस हूँ
ऐसी ही बेबसी कोई दे जाए मुझे
तो शायद भूल जाऊ तुम्हें..
ye aapki kavita ke baaki bhavon ko vyakt kar rahi hai .. :)
thanks chirag ..
nice write sahitiyika .. bahoot khoob likha he .. to sayad bhool jau tumhe .
achchha likha hai
tumhen padhanaa achchha laga
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